देश में नफरत की फैक्ट्री चलाने वालों के चलते खाड़ी देशों में रह रहे 80 लाख भारतीय संकट में

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खाड़ी देशों  में अचानक बीजेपी , आरएसएस समर्थक कट्टरपंथी हिंदुओं द्वारा मुसलमानों के खिलाफ फैलाये जानी वाली नफरत के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है जिसमें अनेक ऐसे हिन्दू वीर हैं जो उन मुस्लिम देशों में लम्बे समय तक काम कर बहुत अच्छा जीवन जी रहे थे । मुसलमानों के खिलाफ किये गए ट्वीट्स और फेसबुक पोस्ट्स के आधार पर न सिर्फ उन देशों में रहने वाले नफरती हिन्दू चरमपंथियों के खिलाफ कार्यवाही करने की खबरें हैं बल्कि भारत में रहकर मुसलमानों के खिलाफ नफरत और घृणा फैलाने वाले लोगों के ट्वीट्स भी भारत सरकार के संज्ञान में लाये जा रहे हैं । सोनू निगम के पुराने ट्वीट्स के आधार पर दुबई में कार्यवाही किये जाने की मांग शुरू हो चुकी है जो अभी दुबई में हैं , जिस कारण उन्हें अपना ट्वीटर एकाउंट डिएक्टिवेट करना पड़ा है ।

कई लोगों का यह मानना है कि भारतीय मुसलमानों के खिलाफ चाहे देश में जो भी किया जाए , विदेशी ताकतों को इसमें बोलने का कोई हक नहीं है इनमें वे लोग भी हैं जो हिंदुओं पर विश्व भर में होने वाले अन्याय की बात करते रहते हैं ।

आज हम वैश्विक व्यवस्था की बात करें तो “किसी समुदाय के खिलाफ लगातार प्रोपेगैंडा चलाना, साम्प्रदायिक दंगे करना , मानवाधिकारों का हनन करना या जनसंहार करना उसका आंतरिक मामला नहीं रह जाता । विश्व ताकतों को इसके खिलाफ न सिर्फ बोलने का अधिकार है बल्कि ऐसे मामलों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग तक ले जाने का अधिकार भी है । 1945 के बाद जिस विश्व व्यवस्था का निर्माण किया गया था , उसमें ये पहलू मुख्य थे । जिन देशों के शासक इन बातों को नहीं मानते और गृहयुद्ध या किसी वर्ग, नश्ल, समुदाय या जाति का जनसंहार करवाते हैं उन देशों में ‘यूएन पीस फोर्स’ तक भेजी जाती रही है ।”

भारत और मुस्लिम देशों के संबन्ध ( पाकिस्तान को छोड़कर ) आज तक बहुत सौहार्दपूर्ण रहे हैं यहाँ तक कि इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय भी सभी मुस्लिम देश तटस्थ रहे हैं । सभी मुस्लिम देश यही मानते रहे हैं कि भारत न केवल शांतिप्रिय देश है बल्कि भारत में मुसलमानों के हितों की पूरी रक्षा भी की जाती है । अनेक दंगे होने के वाबजूद केंद्रीय सरकार को कभी भी साम्प्रदायिक सरकार का तमगा नहीं मिला है परन्तु मोदी सरकार आने के बाद जिस तरह से सरकार प्रायोजित मुस्लिम प्रोपेगेंडा चलाया गया है उसकी अंतिम परिणति यही होनी थी कि सभी इस्लामिक देश भारत के इस नीति का विरोध करें ।

कोरोना से कच्चे तेल ( क्रूड ऑइल ) की कीमत इतनी गिर चुकी है कि वह अमेरिकी बाजार में शून्य डॉलर से भी नीचे चली गयी है । तेल उत्पादक देशों द्वारा उत्पादन में 10 प्रतिशत की कटौती का समझौता करने के बाद भी यह हालात उत्पन्न हो गए हैं । अमेरिकी तेल कंपनियों को निकट भविष्य में बहुत अधिक घाटा होने के आसार हैं क्योंकि लॉक डाउन अभी दुनिया में लम्बे समय तक चल सकता है । “अमेरिकी पूंजीवादी साम्राज्यवाद के सबसे बड़े आधार तेल, डॉलर और हथियार इंडस्ट्री हैं जिन पर भारी दबाव पड़ रहा है ।”  विश्व भर में डॉलर में ही व्यापार होता है । विश्व भर के देशों में डॉलर की मांग का बड़ा हिस्सा तेल आयात पर खर्च होता है । कुछ तेल उत्पादक कम्पनियाँ अब तेल का व्यापार सोने या चांदी में करने की बात कर रही हैं जो डॉलर के अस्तित्व पर बड़ा आघात साबित होगा । आने वाले समय में डॉलर विश्व मुद्रा रह पाएगी यह मुश्किल लग रहा है ।

अमेरिकी अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है । वहाँ दो करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो गए हैं । “अमेरिकी राष्ट्रपति ने न सिर्फ H1B वीजा धारकों को 60 दिन ही देश में रहने की अनुमति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है बल्कि आज विदेशी लोगों के अमेरिका में बसने पर भी तात्कालिक प्रतिबन्ध लगा दिया है ।”

भारत पर इन अमेरिकी निर्णयों का गहरा प्रभाव पड़ने वाला है । H1B वीजा धारक भारतीय न केवल भारत वापस आएंगे बल्कि  अमेरिकी कम्पनियों में काम करने वाले लाखों लोग बेरोजगार हो सकते हैं । ऐसे हालात में हिंदुत्व के चरमपंथी नशे में धुत लोगों को खाड़ी देशों से भी निकाला जा सकता है जिससे लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे । यदि हालात यही रहे तो भारत पर ये देश व्यापार प्रतिबन्ध भी लगा सकते हैं ।

कोरोना से भारत में 40 करोड़ लोगों के बेरोजगार हो जाने की खबर ILO ने पहले ही दी है । खाड़ी देश ऐसी स्थिति में भारत पर व्यापार प्रतिबन्ध लगाते हैं तो यह समस्या और अधिक बढ़ जाएगी । अमेरिका व यूरोपीय देश चीन पर कोरोना वाइरस के आरोप लगाकर हर्जाना माँग रहे हैं । इससे चीन के साथ उनके संबन्ध बिगड़ने तय हैं । विश्व के फिर एक बार दो गुटों में विभक्त होने के आसार साफ — साफ दिख रहे हैं । अमेरिका इस बार किसी अरब देश को अपना शिकार नहीं बना पायेगा और यह भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ महीनों पहले मुस्लिम देशों के कुछ विद्वानों / राष्ट्रप्रमुखों ने कहा था कि “जिस तरह मुस्लिम देशों व मुसलमानों को विश्व भर में टारगेट किया जा रहा है उससे तृतीय विश्व युद्ध से इनकार नहीं किया जा सकता है” ।

ऐसी परिस्थितियों में भारत की गुटनिरपेक्षता की विदेशनीति जो आज तक रही थी, वह बेहद लाभदायक साबित होती परन्तु मोदी सरकार और संघ का एकतरफा झुकाव अमेरिका — इजराइल की तरफ रहा है जिसके कुछ तात्कालिक लाभ अवश्य इनको मिले हैं परन्तु देश के लिए दीर्घकालिक रूप से यह नीति बेहद अहितकर साबित होने वाली है । मोदीजी के रणनीतिकारों को इसका भान हुआ है जिस कारण मोदीजी सद्भाव के ट्वीट कर रहे हैं जो अच्छे संकेत हैं लेकिन जटिल प्रश्न तो वही है कि , “क्या मोदी जी देश भर में मुसलमानों के खिलाफ नफरत का जो प्रोपेगैंडा फैलाया गया है , उसके खिलाफ कार्यवाही कर भी पाएंगे ?

इसका उत्तर भविष्य में मिलेगा और विश्व व्यवस्था कितनी बदलती है इसे हम कुछ वर्षों बाद देखेंगे ।

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