आज जब देश में सब तरफ़ सामाजिक सौहार्द की कमी देखी जा रही है तो हम स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, कवि, मौलाना और कृष्ण भक्त: मौलाना हसरत मोहानी को याद करते हैं जो भारत की विविधता मे एकता के सच्चे प्रतीक थे । मौलाना हिन्दोस्तान की गंगा जमुनी तहज़ीब के सबसे बड़े झंडा बरदारों में से थे ।
हिन्दोस्तान के स्वतंत्रता संग्राम को मौलाना मोहानी ने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा दे कर एक नया आयाम दिया । जो आगे चल कर भारतीय क्रांति का नारा बन गया।
हालाँकि मौलाना मोहानी को आज भी उनकी रोमांटिक ग़ज़ल ‘चुपके चुपके रात दिन’ के लिए याद किया जाता है, लेकिन उनकी शायरी देश के प्रति उनके भावुक प्रेम और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के उनके लक्ष्य को दर्शाती है।
उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अहमदाबाद सत्र में 1921 में भारत के लिए पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) की मांग करने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है
हालांकि हसरत मोहानी एक बहुत ही जटिल लेकिन बेहद दिलचस्प व्यक्तित्व थे।
उनका जन्म 1875 में उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के पास मोहन में एक जमींदार परिवार में हुआ था और उनका असली नाम फज़ल हसन था। ‘हसरत मोहानी ’ उसका शायरी का नाम था, मोहनी उनके मोहन गाँव से आया था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव में हुई और उन्होंने फतेहपुर के गवर्नमेंट हाई स्कूल से मैट्रिक किया। उसके उपरांत मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज, अलीगढ़ (अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) में प्रवेश लिया।
हसरत मोहानी स्वतंत्रता संग्राम में बहुत सक्रिय भागीदार थे और कई बार जेल गए थे। उन्होंने बहुत सी रचनायें जेल में कारावास के दौरान रची थीं ।
हसरत मोहनी बाल गंगाधर तिलक के प्रबल समर्थक थे और जब उनकी मृत्यु हुई, तो हसरत मोहानी ने इन पंक्तियों को लिखा:
“जब तक वो रहे दुनिया में
रहा हम सब की दिलों पर ज़ोर उनका
अब राह के बहिश्त में निज़ाद-ए-खुदा
हूरों पे करेंगे राज तिलक”
हम अक्सर स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका और उनकी रोमांटिक ग़ज़लों के बारे में बात करते हैं, लेकिन शायद ही कभी हम ‘श्री कृष्ण’ के प्रति उनकी भक्ति की बात करते हैं। उन्होंने अपनी पहली कविता ‘श्री कृष्ण’ पर उर्दू में लिखी थी, जब वे 1923 में जन्माष्टमी के दौरान पुणे में थे।
हसरत मोहानी ने ‘श्री कृष्ण’ की प्रशंसा में कई छंद लिखे। ‘श्री कृष्ण’ से उनकी लगन इस बात से समझ आती है कि मोलानाा 11 बार हज के लिए मक्का गए और इतनी ही बार बृंदावन गए ।
‘श्री कृष्ण’ से उनके प्रेम को इन पंक्तियों समझा जा सकता हैं
“मथुरा कि नगर है आशिक़ी का
दम भर्ती है आरज़ू उसी का
पैग़ाम-ए-हयात-ए-जावेदां था
हर नग़मा कृष्ण बांसुरी का”
दूसरी ओर, उन्होंने पैगंबर मोहम्मद की प्रशंसा में असंख्य नातें लिखी जैसे
“ख़याल ए यार को दिल से मिटा दो या रसूल अल्लाह
ख़िरद को अपना दीवाना बना दो या रसूल अल्लाह”
उन्होंने कभी सरकारी भत्ते को स्वीकार नहीं किया या आधिकारिक निवासों पर नहीं रहे। इसके बजाय वह मस्जिदों में रहे और साझा टोंगा में संसद जाते थे। वह एक धार्मिक प्रैक्टिस करने वाले मुस्लिम थे और एक साधारण जीवन जीते थे।
ऐसी अज़ीम शख्सियत को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन ।