चीन के लोग और हम लोग

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चीन हमेशा से एक रहस्यमयी देश रहा है,चीन के बारे में दुनिया को उतना ज्ञान नहीं है जितना उसका प्राचीन इतिहास है।चीन की दीवार,वहां का खान-पान,मार्शल आर्ट,सस्ता बाजार और जनसँख्या पर चर्चा होती है।Google पर भी चीन की दीवार,खान-पान और चीनी ड्रेगन की खोज ज्यादा होती है।चीन कि अंदरूनी व्यवस्था के बारे में कम जानकारी बाहर आती है चीन ने सब पर एक दीवार बना रखी है पर्दा डाल रखा है।
चीन के रहस्यमयी चरित्र को चीन की 21196 किलोमीटर लम्बी दीवार अच्छी तरह प्रतिबिंबित करती है यद्यपि मंगोलियाई कबीलों के आक्रमण से रक्षा के लिए विशाल दीवार का क्रमिक निर्माण हुआ लेकिन इस दीवार ने रक्षा के साथ ही चीन की सरहद का भी स्वतः रेखांकन भी कर दिया।
चीन व्यापारिक मामलों में भी अंतर्मुखी रहा है चीन के रेशम ने हमेशा पश्चिम के देशों को आकर्षित किया है,चीन से रेशम का व्यापार भी सदियों से होता रहा है लेकिन आश्चर्यजनक तथ्य है कि चीन कि ओर से रेशम के व्यापार की पहल नाकाफी ही रही वस्तुतः बाहर के व्यापारी चीन में रेशम के लिए भू-मार्ग,समुद्री-मार्ग खोजते रहे और वहां से आते रहे थे,चीन की ओर से कोई उत्साह नहीं दिखाया जाता था रेशम के निर्माण में सहायक रेशम के कीड़े को कोई ले न जा सके इसके लिए कड़े नियम जरूर थे।
एक दृष्टान्त यहाँ प्रासंगिक होगा जब 1793 में चीन के सम्राट जियोन लॉन्ग  के दरबार में इंग्लैंड के राजा का जॉर्ज तृतीय का प्रतिनिधि मंडल व्यापार की अनुमति के लिए पहुंचा तो इस प्रतिनिधिमंडल ने सम्राट के जन्मदिन के अवसर को भेंट का दिन सुनिश्चित किया ढेर सारे उपहारों भेट के साथ पहुंचे दल को सम्राट ने ढेर सारे उपहार “रिटर्न गिफ्ट” के तौर पर दिए साथ ही इंग्लैंड के राजा जॉर्ज तृतीय को एक लिखित सन्देश भेजा कि “चीन का राज्य स्वर्ग का राज्य है यहाँ किसी चीज़ कि कोई कमी नहीं है धरती पर पायी जाने वाली सभी चीज़ें यहाँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं हम बर्बर (यूरोपियन) लोगों से कोई व्यापार करना नहीं चाहते”बाद में यूरोप के देशों को अनुमति दी गई लेकिन एक शहर कोण्टों Conton  जो अब  गुआंगजो Guangzhou  के नाम से जाना जाता है, तक आवागमन सीमित था चीन के अन्य हिस्सों में भ्रमण कि अनुमति नहीं थी।यूरोपीय अपना माल कोण्टों तक लाते और यहाँ से बदले में आयात किया हुआ सामान ले जाते थे।
७वीं ईसा पूर्व दीवार का निर्माण,रेशम का व्यापार और सम्राट जियोन लॉन्ग का राजा जॉर्ज तृतीय जो लिखा गया पत्र यही सिद्ध करता है कि चीन का अन्य देशों से,सभ्यताओं से व्यापार,मेलजोल सांस्कृतिक आदान प्रदान एक सीमा तक ही था।
चीन कि सभ्यता भारत की तरह ही बहुत प्राचीन है यहाँ भी राजवंशीय शासन व्यवस्था रही है  शंग (c.1600-1050 BC), ज़ोउ  (1050-256 BC), हान (206 BC-AD 220), सूई (581-617) / तांग (618-907),सांग (960-1276) मिंग और ज़िंग वंश इसमें प्रमुख थे।
6वीं सदी ईसा पूर्व में चीन और भारत दोनों में आध्यात्मिक क्रांति सम्पन्न हुई। चीन में कन्फ्यूसियस ने वही संदेश चीन में दिया जो भारत में बुद्ध ने दिया। वैज्ञानिक प्रगति भी चीन में खूब हुई जिनमें पॉर्सेलेन,कागज़,बारूद और धातु विज्ञान प्रमुख है
मध्य काल आते आते चीन भी भारत की तरह ही स्थिर और शिथिल हो गया था जिसमें यूरोप की औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप हुए बदलाव से प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति नहीं थी।यूरोप के देशों की विस्तारवादी और दमनकारी नीति का शिकंजा दोनों देशों पर लगभग समान रूप से रहा और दोनों ही देश यूरोप के उपनिवेश बने। इन दोनों उपनिवेशों के संसाधनों के दोहन ने  यूरोप खासकर ब्रिटेन को दुनिया का बादशाह बना दिया था। 
यूरोपीय शोषण के खिलाफ 19 वीं सदी मे चीन में 1839-42 और 1856-60 अफीम युद्ध और भारत में 1857 का संग्राम एक सी रीति का प्रतीत होता है।
२० वीं सदी की शुरुआत में सामाजिक राजनैतिक परिवर्तन के लिए  दोनों देश तैयार हुए भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1885) और चीन में KMT (1912) जनता के प्रतिनिधि संगठन बने।भारत में अहिंसक जन आंदोलन चला चीन में यह जन आंदोलन हिंसक हो गया जो भी हो दोनों देशों में राजनैतिक परिवर्तन हुए।भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ और 26 जनवरी 1950 को लोकतान्त्रिक गणराज्य बना चीन 1 अक्टूबर 1949 को लोक गणराज्य बना लेकिन लोकतान्त्रिक नहीं।न चुनाव,न राजनैतिक दल,न स्वतंत्र विचार।
एक ही महाद्वीप के दो प्राचीन देश,जिनका इतिहास भी एक जैसा ही है एक अच्छे पडोसी की तरह,पंचशील के सिद्धांत के साथ आगे बढ़ सकें लिहाजा भारत ने “हिंदी चीनी भाई भाई “का नारा दिया यह हिंदी नारा चीन के लोगों ने भी कुछ दिन लगाया लेकिन चीनी भाषा में नहीं सिर्फ हिंदी में और हमें दिखाने के लिए ही था ।अब चीन की विस्तार वादी नीति शुरू हुई तिब्बत,भूटान वियतनाम कोरिया और रूस की तरह ही भारत से सीमा विवाद ।
अंग्रेजों द्वारा 1865 में निर्धारित की गई जॉनसन लाइन,1897 में निर्धारित की गई मेक्डोनाल्ड लाइन को कभी सरहद की मान्यता नहीं मिली सकी। दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सीमांकन का प्रयास तो हुआ लेकिन आगे नहीं बढ़ सक।1962 में इसी सरहद को मुद्दा बना कर चीन भारत के हिस्से में घुस आया भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ अब भारत और चीन “भाई-भाई” नहीं हैं  सीमा पर विवाद झड़प का ये सिलसिला तब से ही जारी है सिक्किम के नाथू ला और चोला में 1967 में,अरुणाचल के तवांग में 1987 में झड़प होती रही हैं शी ज़िंग पिंग की भारत यात्रा के दौरान 2017 में डोकलाम में घुसपैठ की कोशिश हुई थी।
चीन की यही रवैया ज्यादातर पडोसी राज्यों के साथ है।तिब्बत,भूटान,कोरिया,वियतनाम,दक्षिण चीन के समुद्री इलाके में भी चीन की नौ सेना तैनात रहती है।ताज़ा अध्ययनों से पाता चलता है कि चीन की अंदरूनी हालत अब बिगड़ रही है क्योंकि चीन का विस्तृत भूभाग और जनता विकास से अछूती है चीन के सभी बड़े शहर और व्यवसाय दक्षिण चीन में ही है चीन हमेशा ही येलो नदी के आस पास ही विकसित हुआ है  लहासा को छोड़ दें तो बीजिंग,शंघाई तायपेई,हांगकांग,गुआंगजो,मकाउ सब दक्षिण की ओर समुद्री तट पर है शेन्ज़ीन,टियांजिन,डोंगगुआन  नानजिंग, वुहान,शेनयांग, हैंगजो, चोंगकिंग,हार्बिन,सुज़होउ आदि भी एक तरफ ही है जो इंफ्रास्ट्रक्चर है वो स्पेशल इकनोमिक जोन में ही है,बड़ी जनसँख्या आर्थिक विषमता का शिकार है,आम चीनी को बेहतर स्वस्थ,शिक्षा और न्याय उपलब्ध नहीं है। कृषि और सिंचाई की बेहतर व्यवस्था नहीं है अन्य धर्मावलम्बियों को धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है सबसे बड़ी बात ऊर्जावान युवा आबादी की कमी है।
चीन में १९१२ के बाद  सुन यत-सेन,शीआंग काई शेक,माओ ज़े डाँग मार्क्सवादी-साम्यवाद को लेकर चले।१९७८ में डेंग जिओपिंग ने आर्थिक सुधार किये और मिश्रित अर्थव्यवस्था,खुले बाजार की नीति बनाई लेकिन भीतर ही भीतर खुलेपन को दबाने का काम भी जारी रखा  1989 में लोकतंत्र के समर्थन में छात्रों के प्रदर्शन का थियानमेन स्क्वायर में हिंसक दमन हुआ राजनीतिक व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था अलग अलग नहीं चल सकती।अर्थव्यवस्था खुली लेकिन राजनैतिक व्यवस्था बंद? चीन सब कुछ परदे में रख कर करता है छुपाता है यहाँ तक की चीनी विकास दर की गणना भी पीपीपी और नॉमिनल के भ्रम में रखी जाती है चीन अपनी मुद्रा युआन का डॉलर के मुकाबले अवमूल्यन करता रहता है ताकि विदेश व्यापार और निर्यात को बढ़ावा मिले लेकिन ये सब कृत्रिम ग्रोथ है ।
थियानमेन स्क्वायर जैसे बहुत से आंदोलन अभी चीन में पनप रहे हैं जिसे बलपूर्वक दबाया जा रहा है राजनैतिक दल और चुनाव न होने के कारण अघोषित तानाशाही जैसे हालात है।संभव है की अंदरूनी उथल पुथल,कोरोना महामारी फ़ैलाने का दोषी,विश्व समुदाय में अलग-थलग पड़ जाने का भय,अर्थव्यवस्था के संतुलन को बनाने के लिए चीन ने गलवान में एक बनावटी घटना रची हो लेकिन निशाना कहीं ओर हो।संभव है कि चीन युद्धोन्माद फैलाकर अपने देश को एक जुट रखने का अंतिम प्रयास कर रहा हो? निशाना कहीं भी हो भारत एकजुट है भारत की सेना,भारत की अर्थवयवस्था,भारत के अस्त्र-शस्त्र चीन को जवाब देने में सक्षम है भारत एक परमाणु सम्पन्न देश है,भारत की समुद्री सीमायें पूरी दुनिया से जुड़ी हुई है,भारत का व्यापार-व्यवसाय पूरी दुनिया से जुड़ा है,जबकि चीन आज भी हिन्द महासागर से होते हुए ही मध्य पूर्व एशिया,यूरोप से जुड़ पाता है,मध्य पूर्व एशिया से कच्चे तेल के लिए आज भी बड़ा समुद्री मार्ग तय करना पड़ता है इसीलिए पाकिस्तान से मिलकर पाकिस्तान के गवाधर बंदरगाह से CPEC चीन-पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर बना रहा है।इस कॉरिडोर का अब पाकिस्तान में भी विरोध हो रहा है पाकिस्तान भी मानाने लगा होगा कि चीन के लिए कोई दोस्त नहीं है चीन के ही ताइवान,हॉंकॉंग,मकाउ पर भी चीन का रुख आक्रांता की तरह है। 
गलवान घाटी की ऊंचाई समुद्र तल से 14,000 फीट है यहाँ चीन भारत के साथ मई-जून महीने में पत्थर और डंडो से लड़ रहा है चीन ये अच्छी तरह जनता है कि गलवान के आस पास अगर संघर्ष बढ़ा तो पत्थर और डंडो से नहीं होगा भारतीय वायु सेना के जहाज़ चीन को जवाब देने में सक्षम है भारत के पास अतिआधुनिक हेलीकाप्टर और लड़ाकू विमान हैं भारतीय सेना को हाई अल्टीट्यूड में युद्ध का अनुभव है जिसे कारगिल में वो सिद्ध कर चुका है पाकिस्तान प्रायोजित कश्मीरी आतंकवाद और पाकिस्तानी सेना से हाई अल्टीट्यूड पर संघर्ष का वर्षों का अनुभव है चीन को यहाँ कोई अनुभव नहीं है फिर भी युद्ध तो युद्ध है वैसे भी दो महीने बाद यहाँ का तापमान भी माइनस में चला जायेगा लिहाजा गलवान युद्ध क्षेत्र नहीं होगा।
वर्त्तमान में युद्ध नीति बदल गयी है।अब औद्योगिक,साइबर,मीडिया और अर्थव्यवस्था के युद्ध होते हैं चीन भारत से साइबर युद्ध लड़ता रहा है अलग-अलग मोबाइल ऍप के माध्यम से भारतीय डाटा चोरी करता है,चीन के 52 ऍप को भारत ने प्रतिबंधित कर दिया है लेकिन चीन भारतीय कारोबार में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निवेश कर लाभ कामना चाहता है। चीन कि औद्योगिक अर्थव्यवस्था भारत पर बहुत ज्यादा आश्रित है,चीन के तैयार माल का बड़ा ग्राहक भारत है भारत में चीन के माल पर प्रतिबन्ध लगते ही औद्योगिक अर्थव्यवस्था को ध्वस्त होने में  समय नहीं लगेगा। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर ज्यादा निर्भर है इसलिए भारत को फर्क नहीं पड़ेगा।भारत के पास चीन से ज्यादा सिंचित और कृषि योग्य उपजाऊ ज़मीन है,चीन का कृषि उत्पाद अब गिरावट की ओर है  क्यूंकि चीन की कृषि भूमि ज्यादा उर्वरक के उपयोग से ख़राब हो गई है,चीन का भूभाग भारत का लगभग तीन गुना है लेकिन चीन का बड़ा हिस्सा रेगिस्तानी-मरुभूमि और पहाड़ी है  चीन से भारत का संघर्ष कठिन है,लेकिन चीन के लिए भी राह आसान नहीं  है भारत की ताकत है भारत का स्वस्थ लोकतंत्र और भारत के लोग हैं।चीन की कमज़ोरी है चीनी तंत्र का अपने ही लोगों का दमन और दमन से कराहते चीन के लोग हैं।

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