कोरोना महामारी में सरकारों को निम्न वर्ग, तंग बस्ती के रहवासियों की चिंता है।अमीर वर्ग अपने बंगलों में कैद रहते उकता जरूर गया है लेकिन आटे-दाल की चिंता से मुक्त है।कुल आबादी में 45 प्रतिशत मध्यम वर्ग है 20 से 50 हजार की तनख्वाह वाला इस वर्ग ने बैंकों से लोन लेकर बेहतर जीवन के सारे साधन जुटाए हैं।
इसकी हालत ऐसी ही है कि उम्रे दराज मांग कर लाए थे चार दिन, दो कमाने में कटे गए और दो चुकाने में।अमीर औरनिम्न वर्ग के बीच इस वर्ग की हालत सेंडविच हो गई है। अभी जो केंद्र सरकार नें 20 लाख करोड़ का पैकेजजारी किया है और राज्य सरकारें जो सुविधाएं दे रही हैं उस सब में यही वर्ग उपेक्षित है जबकि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सारी अपेक्षा इसी वर्ग से की जाती है।
इस कोरोना काल के चलते मध्यप्रदेश में तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहली से (बोर्ड परीक्षा दसवींछोड़कर) ग्यारहवीं तक के छात्रों को जनरल प्रमोशन देने की घोषणा कर दी है। यदि इन क्लासों की परीक्षाली जाती तो किसी न किसी पर्चे में हां ना में या विस्तार से दस नंबर का प्रश्न पूछा ही जाता कि कोरोना नेकिस वर्ग पर प्रभाव डाला ? हां और ना वाले एक नंबर के प्रश्न में तो ‘सभी वर्ग’ पर टिक करते लेकिन विस्तारवाले प्रश्न के उत्तर में अधिकांश परीक्षार्थी यह भी लिखते कि सबसे अमीर वर्ग दुखी नहीं रहा और तंग बस्ती मेंनारकीय जीवन जीने वालों का दर्द बांटने के लिए दयावान उमड़ पड़े थे। फिर दुखी कौन था? उत्तर में दो शब्दवाला ‘मध्यम वर्ग’ ही लिखा जाता।
सरकार चाहे कांग्रेस की, जनता दल की रही हो या अभी भाजपा की, सर्वाधिक अमीर वर्ग इन सभी दलों केलिए दूध देती गाय रहा है लिहाजा बजट में एक हाथ से सरकारें इनकी नाक दबाने का काम करती हैं तो दूसराहाथ अदृश्य तरीके से इनके गाल सहलाता रहता है।यही कारण है कि बड़े लोग बैंकों से करोड़ों-अरबों का लोनलेकर या तो बड़ी आसानी से फरार होते रहे या ‘विलफुल डिफाल्टर’ के कोडवर्ड से सम्मानित होते रहते हैं।रहीबात निम्न वर्ग की तो राज्य और केंद्र सरकार की शायद ही कोई ऐसी योजना हो जिसे लागू करते वक्त इनकेहितों का ध्यान ना रखा जाता हो।जो सबसे अमीर है उसमें एक बड़ा वर्ग सफेदपोश चोट्टा होकर भी सम्मानपाता है और रहा निम्न वर्ग तो न उसे टैक्स चुकाना है, न पानी का बिल और न ही बिजली बिल।अब बचामध्यम वर्ग जो हर सरकार के करों व अन्य वसूली के निशाने पर रहता है।
चौथे लॉकडाउन की भूमिका बनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा किसान, मजदूर, लघु, मध्यम उद्योग सहित अन्य व्यापारी वर्ग, कारखाना संचालकों के लिए कर चुके हैं।इस पैकेज में सीधीरियायत कितनी और कितना कर्ज रहेगा इसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन और हिंदी में वित्र राज्यमंत्री अनुरागठाकुर समझा चुके हैं। इस पैकेज में जिनकी चिंता की गई है वे वाकई कितने संतुष्ट हैं यह खुशी भी कुछ दिनोंमें सामने आने लगेगी।इस पैकेज से कोई खुश नहीं हो सका है तो वह मध्यम वर्ग ही है।
सत्तर के दशक में निर्माता एलवी प्रसाद की सुपर हिट फिल्म रही है ‘उधार का सिंदूर’। जितेंद्र, रीना राय, आशापारेख की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म एलवी प्रसाद ने अपने आध्यात्मिक गुरु महर्षि महेश योगी कोसमर्पित की थी।इस फिल्म की याद इसके शीर्षक की वजह से ही आई।भारत की 135 करोड़ आबादी में यदिएक तिहाई (33 फीसदी) हिस्सा गरीब वर्ग का है तो मध्यम वर्ग 50 करोड़ (45 फीसद) और अंबानी से लेकरप्रेस्टिज समूह तक छोटा-बड़ा अमीर वर्ग 20 फीसद से अधिक हैं। देश का जो मध्यम वर्ग है ईमानदारी से टैक्सभी चुकाता है, बिजली का बिल, सफाई कर आदि भी समय पर जमा करता है, देश पर आने वाली हर आपदामें सारे त्याग की अपेक्षा का सर्वाधिक बोझ भी यही वर्ग उठाता है। सरकार किसी भी दल की हो सेंडविच यहीवर्ग बनता है। इस कोरोना काल ने भी मध्यम वर्ग की हालत उधार के सिंदूर जैसी ही कर दी है।इस मध्यम वर्गमें वह नौकरीपेशा भी शामिल है जिसकी पगार न्यूनतम 20 से 50 हजार मासिक है और वह व्यापारी भीशामिल है जो हर माह इतने का व्यापार करता है।
इस अप्रत्याशित कोरोना काल में प्रधानमंत्री के जो बचेगा वो ही बढ़ेगा, आत्म निर्भर बनें वाले भाषण की इबारत अपने गांव-देस के लिए भगवान भरोसे जाते अहिंसक लाखों दिहाड़ी मजदूरों ने पहले ही लिख डाली थी। ये सब अपने गांव सकुशल पहुंच कर भूखे पेट रह कर भी खुश होंगे कि पहुंच तो गए। वैसे ही शहरों-महानगरों में कैद अमीर वर्ग अपने बंगलों-कोठियों में कैद रहते उकता भले ही गया हो लेकिन उसे कम से कमआटे दाल की चिंता तो नहीं है।निम्न वर्ग के लिए राज्य सरकार से मिलने वाला मुफ्त राशन है, स्वयंसेवी संस्थानों के भोजन पैकेट में आलू की सब्जी-पूरी है, खिचड़ी है, बिस्कुट के पैकेट हैं, अचार रोटी है कुलमिलाकर विविध व्यंजन हैं।इस सब के बाद फिर इस वर्ग में हाथ फैलाने की झिझक भी नहीं है।
और मध्यम वर्ग बोले तो उधार का सिंदूर, बाकी की तरह वह भी दो महीने से घरों में कैद है लेकिन इज्जत औरझिझक की बेड़ियों से मुक्त नहीं हो पा रहा है।
मध्यम वर्ग की तड़क भड़क उधारी या बैंक लोन बिना संभव हीनहीं, यह हकीकत सरकार को और सेवा करने वाले संगठनों को भी समझ नहीं आ रही है।इन सब को यहीलगता है बढ़िया फ्लैट, मकान, गाड़ी, फ्रिज, टीवी सब तो है, इन्हें काहे का संकट।इस वर्ग की चुनौती यह है किमकान बनाना या फ्लैट-गाड़ी-व्हीकल खरीदना हो, हर सपना पूरा करने के लिए बैंक लोन पर निर्भर रहना है।बच्चों के बेहतर एजुकेशन के लिए, पब्लिक स्कूल का खर्चा बाद की ऊंची पढ़ाई के लिए एजुकेशन लोन, अचानक बीमारी-दुर्घटना में महंगे इलाज में राहत के लिए इंशुरेंश की किश्त, टीवी-फ्रिज आदि के लिए लोनयानी घर की खुशहाली का अखंड दीपक उधार के सिंदूर से ही रोशन रहता है।
देश की कुल आबादी के इसआधे हिस्से की हालत तनख्वाह का दिन आने तक नतीजा ठनठन गोपाल जैसी हो जाती है। बैंक किश्तों केपीडीसी पहले ही तैयार रहते है, उसके बाद महीने की उधारी चुकाने के बाद बचा पैसा बिजली, पानी, दूध आदिके बिल भरने के बाद आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया वाली हालत हो जाती है। टैक्स चुकाने वाले इस मध्यमवर्ग की इस कोरोना काल ने कमर तोड़ दी है।निजी संस्थान बंद रहने से फिलहाल तनख्वाह भी नहीं है, लेकिन बैंक की किश्तों का मीटर, महीने का बाकी खर्च तो चालू है, थोड़ी बहुत जो बचत कर रखी थी वह भाप की तरह उड़ती जा रही है।
इस अकल्पनीय त्रासदी का शिकार मध्यम वर्ग केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ केपैकेज से तो बाहर है ही राज्य सरकार की योजनाओं में भी उसके लिए प्राथमिकता नहीं है। वह अपने दुख सेतो दुखी है ही उसे अपने से कम आय वाले रिक्शा चालकों, सिक्योरिटी गार्ड, हेयर कटिंग सैलून संचालकों, कोर्ट वकीलों, ठेला-रेहड़ी संचालकों, चाट-पकोड़ी की दुकान लगाने वालों से लेकर रोज कुआं-खोदने-रोजपानी पीने वाले उन तमाम वर्गों की चिंता भी खाए जा रही है जो पैकेज के लाभ से कोसौं दूर हैं।रही बात पैकेजका लाभ पाने वालों की तो इसका दर्द व्यक्त करने का साहस पीएम की कुर्सी पर रहते राजीव गांधी ने दिखाया था कि केंद्र राहत का एक रुपया जारी करे तो जरूरतमंद तक पंद्रह पैसे ही पहुंचते हैं।उनकी इस आधिकारिक स्वीकारोक्ति को बदल डालने के लिए मनमोहन सिंह सरकार ने कुछ किया हो इसका रिपोर्ट कार्ड तो जारी हुआ नहीं। इस सरकार ने जरूर प्रयास किए, ऑनलाइन सब्सिडी-छूट की राशि सीधे खाते में जमा होने लगी लेकिन बदलाव इतना ही हुआ कि राहत और पैकेज में सेंधमारी करने वालों के चेहरे बदल गए।सत्ता में बदलाव की ताकत दशकों से जिस मध्यम वर्ग को माना जाता रहा है, वह वर्ग आज भी भाषणों में तो वंदनीय है लेकिनपैकेज के लाभ पाने वालों में कतार का अंतिम आदमी भी नहीं बन पाया है।
प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक हुए हैं चार्वाक। नास्तिक मत के प्रवृतक बृहस्पति के शिष्य चार्वाक दर्शन का श्लोक आज भी सुनाया जाता है ‘जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्…’
(अर्थात-मनुष्य जब तक जीवित रहे तब तक सुखपूर्वक जिये।ऋण करके भी घी पिये।यानी सुख-भोग के लिए जो भी उपाय करने पड़ें उन्हें करे। दूसरों से भी उधार लेकर भौतिक सुख-साधन जुटाने में हिचके नहीं।)
चार्वाक ने जब अपना दर्शन और विचार शताब्दियों पहले व्यक्त किए थे तब उन्हें भी कहां पता रहा होगा कि कोरोना काल में उनके यह विचार मध्यम वर्ग को लगेंगे तो बहुत अच्छे लेकिन बैंक और ऋण देने वाले साहूकार तक बिना लिखा-पढ़ी और नामिनी-गवाह आदि की खानापूर्ति के उधार नहीं देंगे।ऋण लेने वाला भस्मीभूत हो भी जाए तो विरासत में पत्नी-उत्तराधिकारी के लिए मकान-कार लोन की किश्तें तो छोड़ ही जाता है। लाइफ इंशुरेंस का पैसा मिलने की उम्मीद रखने वाले परिवारों का हिसाब तब गड़बड़ा जाता है जब लेनदारी वाली सूची पहले ही पहुंच जाती है।मध्यम वर्ग के हित में सरकारें शायद इसलिए भी नहीं सोच पाती क्योंकि सरकारी योजनाएं बनाने का एकाधिकार उस अफसर लॉबी के जिम्मे रहता है जो हर परेशानी को अपने स्टेटस मुताबिक सोचता है। निम्न वर्ग की चिंता सरकार की योजनाओं का आधार होती हैं तो उधार के जंजाल में उलझे मध्यमवर्ग की समस्याएं सरकार के लिए निराधार हो जाती हैं।
(लेखक इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार व दैनिक भास्कर के पूर्व सम्पादक है)