भगतसिंह होना- आज होते तो- वर्तमान सत्ता

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मैं आज यह लेख लिख रहा हूँ जबकि आज तारीख़ 29 सितंबर 2021 होने वाली है। शहीद-ए-आज़म की जयंती बीत चुकी है। लगभग सभी ने जोर-शोर से व्हाट्सएपिया स्टेटस पर उस किवंदती को याद किया और सम्मान भी दिया। अब हम हमारे ढर्रे पर लौट आये हैं और अब फिर से बेशर्मी के साथ यह कहावत कह पाएंगे- “हमें भगत सिंह चाहिए लेकिन पड़ोसी के घर में!!” इस तरह हम जैसे ओछे लोग शहादत को मूर्खता बता देते हैं और उनकी शहादत का अपमान कर देते हैं। अगर आज शहीद-ए-आज़म होते तो आपसे बदला लेते??

नहीं!! क्योंकि उनके लिए गद्दार भारतीय भी भाई ही थे। बहके वह भारतीय उनकी शहादत का मज़ाक बना दे।

क्या हमारी पीढ़ी ने कभी जहमत उठाई कि यह सोचे भगत सिंह ही शहीद-ए-आजम क्यों बने??

कई लोग उनसे भी कम आयु में जंग ए- आजादी में शहादत को प्राप्त हुए और भी कई लोग हंसते हंसते फांसी चढ़ गए

और भी कई लोग लाठियों के सामने हंसते रहे और शहीद हुए

भगत सिंह ही शहीद ए आजम क्यों बने??

मेरा मानना है भगत सिंह के लिए शहादत मुकाम नहीं था उनके लिए शहादत एक जरिया था। जिससे देश में बेलगाम हुकूमत के खिलाफ युवाओं को झंडा बुलंद करने के लिए उकसाया जा सके, उन्हें यह एहसास दिलाया जा सके कि आप पर हो रहे अत्याचार के लिए आपको उठानी ही चाहिए जो अपनी शहादत को जरिया बनाएं और अपने ही पिता द्वार अपने लिए लगाई गई दया याचिका पर अपने ही पिता को ताड़े ऐसे व्यक्ति को आप को शहीद-ए-आजम कहना ही होगा।

अगर आपको लगता है कि शहीद-ए-आजम का विरोध केवल और केवल अंग्रेजों से था तो आप को उनके बारे में अपनी जानकारी दुरुस्त कर लेने की आवश्यकता है। उनका विरोध केवल अंग्रेजों से ही नहीं था, उनका विरोध हर अव्यवस्था से था, आज भी जो व्यक्ति अव्यवस्था के खिलाफ अपना विरोध प्रकट करता है, वह भगत सिंह है क्योंकि वे सती प्रथा के विरोधी थे, वे बाल विवाह के विरोधी थे, वे सांप्रदायिकता के विरोधी थे, वे पाखंड के विरोधी थे, वे पण्डे और मौलवियों के विरोधी थे, वे दोनों की खिंचाई बराबर करते थे। वे यहां तक कहते थे- “पुट्ठे के बने ताजिया का कोना फट जाना और एक गाय का मर जाना कैसे किसी धर्म को खतरे में ला सकता है?? कैसे हम इंसान होकर एक बुत और एक जानवर के लिए एक दूसरे का खून बहा सकते हैं??”

आज आप यह कहने का साहस जुटा लें तो आपके लिए NSA व UAPA लगा दिया जाएगा। उन कानूनों में वर्तमान सरकार में सुधार किए हैं, यह सुधार कृषि सुधार कानूनों सरीखे नहीं है, यह सुधार आपको अंग्रेजों की याद दिलाने वाले कानून है या आप ऐसी बात कहें जैसी उस समय शहीद ए आजम ने कही थी तो आपका मुंह नोच लेंगे दोनों पक्ष!!

वे समय-समय पर अखबारों को भी हड़का दिया करते थे जैसे- आज कल के अखबार खबरों और जानकारियों का स्त्रोत कम और नेताओं का प्रशंसा पत्र अधिक लगते हैं!!

आपको अगर उक्त दोनों बातें जानी पहचानी लग रही है और भोगी भक्ति सी लग रही है तो बधाई हो आप में भगतसिंह है आप मानेंगे नहीं लेकिन यह सही है आज भी भगत सिंह है

अगर भगत सिंह आज होते तो वे निर्विवाद रूप से जेएनयू में ही पढ़ते और वह भी आजादी-आजादी के नारे लगाते उन पर भी गोदी मीडिया ट्रायल होता।

अगर भगत सिंह आज होते तो वे भी डॉक्टर कफील खान, सफूरा जरगर, शरजील इमाम, नताशा नरवाल और फादर स्टेन स्वामी आदि की तरह आज आज भी जेल में यातनाएं सहते।

अगर भगत सिंह आज होते तो उन्हें लेफ़्टिस्ट कहकर खारिज करने की साजिश हो रही होती।

अगर भगत सिंह आज होते तो सीएए, एनआरसी और किसान आंदोलन का चेहरा होते।

अगर भगत सिंह आज होते तो एनडीटीवी प्राइम टाइम वे कर रहे होते।

अगर भगत सिंह आज होते तो वे कहते-” मेरा नाम भगत सिंह है, सावरकर नहीं मैं माफी नहीं मांगूंगा!!”

अगर भगत सिंह आज होते तो गोदी मीडिया उन्हें भी वजह-बेवजह किसी न किसी मामले में खींच लेती!!

क्योंकि हर अव्यवस्था के खिलाफ खड़ा होने वाला भगत सिंह है अगर वह होते??

वे होते नहीं, वे है और तब तक रहेंगे जब तक असमानता, सांप्रदायिकता, पाखंड, ढोंग और शोषण है वे रहेंगे। जब तक इन सभी दुष्कृत्यों का पूर्णतः सफाया नहीं होता, वे रहेंगे और इन दुष्कर्मों का सफाया संभव नहीं क्योंकि यह एक संपूर्ण व्यवस्था में ही संभव है और जो व्यवस्था संपूर्णता का दावा करें वह व्यवस्था होती है और व्यवस्था में यह दुष्ट कृत्य और बढ़ जाते हैं तब भगत सिंह और अधिक आवश्यक हो जाते हैं

एक और बात.. वर्तमान व्यवस्था भगत सिंह का बहुत प्रयोग करती है क्योंकि उससे उन्हें अपने आदर्श आतंकी गोडसे के पक्ष में कुछ बोलने का मौका मिलता है वे कहानी यू बनाते हैं- “शहीद ए आजम भगत सिंह और गांधीजी दोनों एक दूसरे के खिलाफ थे अगर भगत सिंह सही है तो गांधी गलत और गांधी गलत इसलिए उनका हत्यारा सही!!”

इन जाहिलों के लिए वैचारिक मतभेद और खिलाफत में अंतर ही नहीं है, यह कभी नहीं समझ सकते कि एक बाई आंख होती है और एक दाएं आंख और दोनों से ही देखा जाता है। एक भी ना हो तो आदमी काना हो जाता है, इसी तरह गांधी और भगत सिंह अलग-अलग किनारों पर भले खड़े हो लेकिन मकसद दोनों का एक ही है- राह दिखाना!!

वर्तमान सत्ता के लिए शहीद-ए-आजम जब तक गांधी भर्त्सना का टूल रहेंगे। इनके सम्मान के पात्र रहेंगे जैसे यह गरज निकलेगी यह शहीद-ए-आजम पर भी इल्जाम लगा देंगे कि वे अधिकतम पत्राचार उर्दू में करते थे, जैसे इन्होंने नेहरू जी के विवाह के निमंत्रण पत्र पर लगाया था कि नेहरू जी का विवाह निमंत्रण पत्र उर्दू में छपा था।

यह जाहिल यह भी नहीं जानते कि तब पत्राचार के लिए अंग्रेजी के बाद सबसे प्रचलित लिपि उर्दू ही थी।

खैर..

इंक़लाब ज़िंदाबाद!!

इंक़लाब जारी रहे!!

माये भी रंग दे बसंती!!

जय भारत!!

योगेश कुमार

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