मैं,
भारत देश का एक सबल नागरिक,
जिसने अपनी संवेदनशीलता को गिरवी रख,
चाटुकारिता को चुना है।
मैं,
भारत देश का एक प्रबल नागरिक,
जो राष्ट्र को समर्पित तो है,
मगर अपने असहाय नागरिकों के प्रति निष्ठाविहीन है।
मैं,
भारत का एक शशक्त नागरिक,
जो अपने राजनीतिक कुतर्कों में इतना उलझा हुआ है,
कि उसे न अब कुछ सुनाई देता है, न दिखाई देता है।
हे,
भारत वर्ष के शक्तिशाली नागरिक।
तुम्हारी शक्तियों के अथाह प्रभाव के समक्ष मैं नतमस्तक हूँ। तुम्हारी सबलता का मैं कायल, तुम्हारी सामर्थ्यता का मैं गुण गायक।
हे सर्वेसर्वा समृद्धशाली नागरिक, अपनी शक्तियों का प्रयोग करो।
देश के असमर्थों के काम आओ।
उनकी बातें मनवा दो।
उन्हें घर पहुंचवा दो।