आजकल हम हर दूसरे या तीसरे दिन देखते हैं कि किसी के धार्मिक भावनाओं को ठेस लगी या उनकी भावनाएं आहत हो गई।
पहले तो देखना होगा कि धर्म क्या है??
गीता/बाइबिल में बताया गया है वह!!
या जो ईश्र्वर पूजन के आधार पर विभाजन किया गया है वह!!
मैं भगवान को पूजता हूँ तो हिन्दू और अल्लाह को पूजता हूँ तो मुसलमान!!
सम्प्रदाय में तो आप अलग अलग देवी देवता पूज लीजिए आपका सम्प्रदाय अलग हो जाएगा। हिन्दू को धर्म इसलिए कहा गया है क्योंकि इसमें ईश्वन्दन की कोई विशेष पाबंदी नहीं है।
दया, परोपकार, दृढ़ता, नियम पालन और समयानुकूल व्यवहार.. यही धर्म है। समयानुकूल व्यवहार का तात्पर्य यहाँ मौकापरस्ती से नहीं है। वह साधु की कहानी सुनी होगी मैं फिर से याद दिलाता हूँ, उदाहरणार्थ- एक घने वन में एक साधु की कुटी थी वहाँ एक निरीह भागता आता है और दस्यु सरंक्षण की प्रार्थना करता है। साधु उसे अपनी कुटी में छिपा देता है और दस्युओं को मिथ्यासूचना देता है। और निरीह व्यक्ति को बचा लेता है। इसपर मिथ्याभाषण को अधर्म नहीं माना जायेगा। मैं पाप-पुण्य की बात नहीं कर रहा मैं अधर्म-धर्म की बात कर रहा हूँ। पाप पुण्य धर्म का भाग है, ईश्वर, तपस्या, न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य, सृष्टि सभी धर्म का ही भाग है। केवल धर्म अपने आप मे परिपूर्ण है।
ईश्वर/ सृष्टिकर्ता, पालक, भंजक से भी विराट है धर्म!!
आप किसी भी सम्प्रदाय से हों लेकिन जीवदया, निरीह रक्षा, दान, सत्यवाचन, भावना और विश्वास लगभग सभी सम्प्रदायों का धर्म है ही.. क्योंकि वैयक्तिक धर्म कभी भी अलग होता ही नहीं।
समस्या यहाँ आरम्भ होती है कि हम सम्प्रदाय को धर्म समझते हैं और कर्मकांड को आस्तिकता। मंदिर जाना, पूजा पाठ करना आदि कर्मकांड है लेकिन हम यह सब करने वाले को आस्तिक समझते हैं जबकि आस्तिक वह है जो आस्था रखता हो। ॐ और स्वास्तिक हमारे सर्वथा पावन चिन्ह हैं। ॐ है हमारा आंतरिक नाद.. वह नाद जिससे प्रकृति का सतत निर्माण, चालन और विनाश हो रहा है। स्वास्तिक का अर्थ है- स्व+आस्तिक यानी जिसकी स्व में स्व के रूप में बसे आंतरिक ईश्वर में आस्था हो!! स्व में बसे ईश्वर में जिसका विश्वास हो। अपने मान्य ईश्वर में, अपने धर्म में(सम्प्रदाय में नहीं धर्म में), अपनी मान्यताओं में, अपने कर्म में जिसका दृढ़ विश्वास हो वही धर्मयुक्त जीवन जी सकता है। उसकी धार्मिक भावनाएं फौलाद से भी दृढ़ होगी।
यदि भावनाएं आहत होती है तो स्वीकार कर लीजिए कि आपका विश्वास कमज़ोर है।
जय भारत
धार्मिक भावनाएं आहत कैसे होती है
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