एक खबर आती है- “पेंटागन में US के रक्षा मुख्यालय के पास धमाका!!” साथ में धमाके की एक फोटो भी चलती है। यह खबर बहुत से मीडिया चैनल्स पर चलती है। अंततः यह खबर झूठी निकलती है।
यह खबर AI जनरेटेड थी। हमारे मीडिया चैनल फ़िज़ूल मुद्दों पर बहस करते करते आज झूठ फैलाने का अड्डा भी बन चुके हैं, सोशल मीडिया तो कभी भरोसेमंद रहा ही नहीं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बिक चुका है और प्रिंट मीडिया पर भी कुछ खास भरोसा नहीं किया जा सकता। इसी तरह यह भी बताया जा रहा है कि-
★पापुआ के PM ने प्रधानमंत्री मोदी के पैर छुए..
★अमेरिकी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री मोदी के ऑटोग्राफ चाहते हैं..
★ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी को बॉस कहा है..
बतौर एक भारतीय मुझे ऐसी सब बातों पर गर्व होता है। मगर इन सबका लब्बोलुआब यही है कि हर तरह का मीडिया मोदीपुराण सरीखा प्रतीत होने लगा है। जैसे कोई भक्ति पुराण किसी आराध्य की महिमा से शुरू होकर आराधना पर खत्म होता है ठीक वैसा ही हमारे आसपास के समस्त मीडिया को देखकर लगने लगा है।
कोई भी व्यवस्था या कार्य मोदी जी से आरम्भ और उन्हीं पर समाप्त हो जा रही है।
हमारी संसद की नई इमारत का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री करने वाले हैं, संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के बाद पद के रूप में तीसरे नम्बर पर आने के बावजूद भी जैसे कि राष्ट्र के लिए प्रथम पुरुष प्रधानमंत्री मोदी हैं। मैं विपक्ष के मुद्दे पर नहीं जाना चाहता जैसा सुप्रीम लीडर चाहेंगे वही होगा।
हमारे प्रधानमंत्री को सेंगोल उपहार में मिला है। जिसे वे संसद में स्थापित करवाएंगे। गोयाकि राजा की शक्ति और अधिकार का प्रतिनिधि चिन्ह जनता की शक्ति और अधिकार के भवन में स्थापित किया जाएगा। इससे क्या इशारा किया जा रहा है??
क्या वाकई में जनता जो शक्ति चुनती है देश चलाने के लिए वह शक्ति अब जनता के बिना ही चुनी जाने वाली है। दूसरे शब्दों में कहें तो क्या लोकतंत्र को अलविदा किया जाने वाला है और साम्यवाद के लिए लाल गलीचा बिछाया जाने वाला है??
क्या नई संसद इसलिए भी बनाई गई है कि इसमें आज़ाद भारत के, लोकतांत्रिक भारत के महानायक नेहरू जैसे लोकतंत्र के पहरुए की याद नहीं होगी। पुरानी संसद उन्हें नेहरू, अटल जैसे नेताओं के संसदीय व्यवहार की याद दिला देती थी और वे लोकतंत्र के मंदिर में साम्यवाद की मूर्ति स्थापित नहीं कर पा रहे थे??
नई संसद में केवल हिन्दू व्यवस्था की पूजा ही हो रही है क्या यह केवल हिदुओं की संसद है.. इसमें मुस्लिम, ईसाई, पारसी और सिक्ख पद्धतियों से भी पूजा क्यों नहीं करवाई गई?? खैर..
मैं साम्यवाद को लेकर पूर्णतः आश्वस्त इसलिये हूँ कि-
मोदी मोदी
हर हर मोदी घर घर मोदी
जैसे नारों और विराट विज्ञापन व्यवस्था के तहत हमारे सामने एक महानायक की छवि विज्ञापित की गई। रची नहीं गई.. बस अधिनायकवादी टाइप का माहौल बना दिया ताकि हम मुद्दों, राष्ट्र, व्यवस्था और तंत्र की बात छोड़कर व्यक्ति की बात करें। तभी तो मुझे पिछड़ा कहते हैं, गरीब माँ का बेटा हूँ, मैंने चाय बेची है, मैंने भिक्षा माँगी है, मैं पर्स नहीं रखता था, मैंने समय बचाने को कुर्ते की बाहें काट दी, मुझे नीच कहा, मुझे 91बार गालियां दी। सरीखे भाषण होने लगे। मीडिया आपसे पूछने लगा “Iff.. nott MODII thenn whooooooo??” इस तरह चुनाव में राष्ट्र या मुद्दों पर व्यक्ति को तवज्जो दी जाने लगी। ये एक तरह का अधिनायकवाद हमपर लाद दिया गया और अनजाने में हम उसे उठा रहे हैं, ढो रहे हैं और निभा भी रहे हैं। लेकिन हम यह भूल जाते हैं- लोकतंत्र में अधिनायकवाद का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अधिनायकवाद में आत्ममुग्ध नेता लोकतंत्र को खा जाता है.. यह राष्ट्रीय/राज्य स्तर पर या दल के अंदर भी हो सकता है। जब भी लोक से अधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति विशेष होगा तब तब छपास/ आत्ममोहित/ आत्ममुग्ध/ इतिहास में अमर होने का भूखा व्यक्ति महानायक का मुखौटा लगाए आएगा और समस्त तंत्र का नाश कर देगा।
देश ने बड़ी कुर्बानियां दी है, आहुतियां दी है, तपस्या की है इस तंत्र को पाने और बनाने के लिए.. अब इसे यूं ही बर्बाद नहीं कर सकते।
मीडिया, प्रधानमंत्री, लोकतंत्र, नई संसद और साम्यवाद
Date:
Disclaimer :- This post is independently published by the author. Infeed neither backs nor assumes liability for the opinions put forth by the author.