“नाथूराम गोडसे… “इस नाम से मेरे शुरू करने के कारण आपको लगेगा कि मैं इसमें नाथूराम गोडसे की भर्त्सना करने वाला हूं, तो आपकी मंशा पूरी नहीं होगी क्योंकि विध्वंस की परिकल्पना बिना सृजन का महत्व समझ नहीं सकते। आप शिव के रूद्र रूप के उपासक हैं, तो कोई सदाशिव का भी होगा!! खैर.. नाथूराम गोडसे गांधी जी के लिए कहा था- “बापू एक साधु हो सकते हैं एक राजनीतिज्ञ नहीं।” यह बात उन्होंने अपने ऊपर चलें न्यायिक अभियोजन में कही थी, वह मुकदमा राष्ट्रपिता की हत्या का था, गोडसे भी उन्हें राष्ट्रपिता मानता था, यह हुई उनके हत्यारे की बात!!
अल्बर्ट श्वाइटज़र आधुनिक महान मानवतावाद के प्रतिपादक, इन्हें आधुनिक “पश्चिमी तथागत” भी कहा गया, वह कहते हैं- “गांधी का जीवन दर्शन अपने आप में एक संसार है, गांधी ने बुद्ध की शुरू की हुई यात्रा को ही जारी रखा है, बुद्ध के संदेश में प्रेम की दुनिया में अलग तरह की अध्यात्मिक परिस्थितियां पैदा करने का लक्ष्य अपने सामने रखती हैं, लेकिन गांधी तक आते-आते यह प्रेम केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि समस्त सांसारिक परिस्थितियों को बदल डालने का कार्य अपने हाथ में ले लेता है।” यह उनकी पुस्तक “इंडियन थॉट- एंड इट्स डेवलपमेंट” में है।
(लिंक के लिए मित्र का धन्यवाद)
अल्बर्ट श्वाइटज़र के एक अनुयाई थे, जिनका नाम ‘अल्बर्ट आइंस्टाइन’ था, उनके अविष्कारों ने दुनिया बदल दी थी, अथाह शक्ति, अथाह विकास, अथाह विध्वंस की राह खोल दी। किंतु वैश्विक परिस्थितियों ने उन्हें मथकर रख दिया और उन्होंने अल्बर्ट श्वाइटज़र और गांधी को अपना आदर्श माना। बकौल आइंस्टाइन- “समय आ गया है कि सफलता के स्थान पर सेवा की तस्वीर लगा दी जाए!!” किंतु यह परिवर्तन उनके लिए ही होता है, जिनका जीवन तर्क और चिंतन की प्रयोगशाला हो, जब-जब उन्हें लगा विज्ञान की शक्ति का अहंकार मानव जाति का शत्रु बन सकता है, तब-तब उन्होंने अहिंसा, सेवा, त्याग की बात की गोयाकि गांधी को पढ़कर अपने शब्दों में दोहरा दिया हो।
उन्होंने गांधीजी को पत्र में लिखा- “अपने कारनामों से आपने बता दिया कि हम सब अपने आदर्शों को हिंसा का सहारा लिए बिना भी हासिल कर सकते हैं, हम हिंसावाद के समर्थकों को भी अहिंसक उपायों से जीत सकते हैं, आप की मिसाल से मानव समाज को प्रेरणा मिलेगी और अंतरराष्ट्रीय सहकार और सहायता से हिंसा पर आधारित झगड़ों का अंत करने और विश्व शांति बनाए रखने में सहायता मिलेगी। भक्ति और आदर के उल्लेख के साथ, मैं आशा करता हूं कि मैं 1 दिन आप से आमने सामन दर्शन कर सकूंगा।”
इसके बाद हम जरा मुद्दे से भटकते हैं और “नेहरू पर गांधी के प्रभाव को चीन युद्ध में हानि” से जोड़ते हैं। जब एक विदेशी व्यक्ति गांधी के दर्शन को केवल अखबारों में पढ़ने के बाद “अंतर्राष्ट्रीय सहकार और सहायता से हिंसा आधारित झगड़ों का अंत करने और विश्व शांति बनाए रखने में सहायता मिलेगी” सरीखी पंक्ति लिखता है, तो गांधी के अनुयायी से हम युद्ध या नरसंहार में विजय की कैसे सोच सकते हैं। इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वह व्यक्ति कायर है। “शांति हेतु शक्ति संचय”सर्वथा विध्वंसक सिद्धांत है। अपने अपराधी को क्षमा कर देने के लिए बहुत साहस चाहिए, आत्मबल चाहिए। देवदास गांधी, जिन्होंने गोडसे को माफ कर दिया था, अपने पिता की हत्या के लिए। कुछ इसी तरह का कारनामा राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी ने किया था!! इसके लिए असीम साहस चाहिए!! वे इस साहस का उदाहरण है, किंतु हम रास्ते मे किसी से हुई मामूली तूतू-मैंमैं को दिनों तक नहीं भूलते खैर.. युद्धों पर कमजोर होना, किसी देश की कमजोरी नहीं हो सकता। जापान इसका उदाहरण है, पर क्या गोडसे के घर में गांधीजी का नाम आदर से लिया जाता है?? यह महानता का अंतर तो है!!
गांधी जी के 75वें जन्म दिवस पर आइन्स्टाई ने लिखा था- “आने वाली पीढ़ियां विश्वास ही नहीं करेगी कि आप जैसा हाड़ मांस से बना व्यक्ति इस धरती पर चलता भी था।”
नेल्सन मंडेला की आत्मकथा तो जैसे गांधी के सिद्धांतों की भूमिका ही हो। लगता है, उनका जीवन पूर्णतः इसी आधार पर चला था। वे सत्याग्रह को ह्रदय परिवर्तन की चिकित्सा कहते हैं, और अहिंसा को सर्वथा शक्तिशाली रणनीति के रूप में दिखाते हैं, और कहते हैं ‘मेरे साथी भी इसे सर्वदा सर्वथा नैतिक मार्ग स्वीकार करते थे क्योंकि वहां राज्य से युद्ध था और उसे हिंसा द्वारा विनाशक रूप से कुचला जा सकता था तब अहिंसा उनकी आवश्यकता बन गई थी।’ इसके लिए नेल्सन मंडेला की आत्मकथा ‘LONG JOURNEY TO FREEDOM’ के गांधी जी से संबंधित हिस्से आज भी प्रासंगिक है और अपने अन्तस् और कमजोरियों का क्रूर परीक्षण देखना हो, तो यह आत्मकथा पढ़ने लायक है ही। नेल्सन मंडेला ने अपनी आत्मकथा में अपने नायककत्व की धज्जियां उड़ाई है, इस ईमानदारी को नायक ही धारण कर सकते हैं। यदि किसी ने अपनी आत्मकथा में अपना यशोगान किया हो तो उसे फर्जीवाड़ा कहा जाएगा वह आत्ममुग्ध व्यक्ति का स्वगान ही है।
गांधी का लोकतंत्र पंक्ति के अंतिम व्यक्ति को भी अधिकारों की प्राप्ति पर आधारित था, तो क्या इसलिए समता से डरने वाले लोग गांधी से नफरत करते हैं??
जब उनका हत्यारा उन्हें साधु और राष्ट्रपिता मानता है, तो हमें उनसे समस्या क्यों है?? क्या हम उस महान विचारधारा के हत्यारे हैं और गोडसे से बड़े अपराधी हैं, और अपनी इस आत्मग्लानि के बोझ तले गांधी को कोसते हैं!!
जब गांधी के तरीकों का प्रत्यक्ष प्रभाव हम दक्षिण अफ्रीका में देख चुके हैं, अहिंसा किस प्रकार रणनीति बन सकती है, और आज गांधी के देश में उनके “चरखे से मिली आजादी” को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा जा रहा है। पर पूरा विश्व उनकी महानता से अवगत है। “कुआं ही तो संसार नहीं।” मैं यहां क्रांतिकारियों की शहादत को गौण/अस्वीकार करने का निकृष्ट प्रयास नहीं कर रहा, बस गांधी की अहिंसा की महत्ता को स्वीकार कर रहा हूँ। गांधी के लोकतंत्र की आज क्या गत हो रही है, जब मजदूर बेसहारा है। 1947 के पलायन में देश सक्षम नहीं था, पर आज के हालात में क्या गांधी का लोकतंत्र का सपना ध्वस्त नहीं हो गया!!??
जिन्हें उनका हत्यारा साधु कहता है, और आज उन्हें एक होशियार वकील और अंग्रेजों के एजेंट के रूप में वह मूढ़मति पीढ़ी पेश कर रही है, जिसे उस नैतिकता के युग की हवा की ठंडक का भी एहसास नहीं। मगर इस पीढ़ी के मन में यह भाव भरने के लिए ही गांधी जी की छवि का बलात्कार करने वालों ने शिक्षा के क्षेत्र में पैर पसारे और अपने विद्यालय खोलें ताकि बचपन से इस भाव का प्रत्यारोपण किया जा सके।
क्या सच में नायक या आदर्श चयन की प्रक्रिया पुनर्परिभाषित करने का समय आ गया है?? मैंने राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन नहीं किया है पर सत्य न्याय अहिंसा का अर्थ और असर समझने का प्रयास जारी है…..
जय भारत!!
योगेश कुमार आचार्य
जोधपुर।