दिलीप कुमार का शरीर आज नहीं रहा। उन्हें भूख लगनी बंद हो गई थी और काफी समय तक वे नींबू पानी या और दूसरे तरह के पेय पदार्थों पर जीवित रहे। उनके अभिनय उनकी उपलब्धियों पर आपको जानकारी इंटरनेट पर मिल जाएगी और उनके हुनर की बात करना सूरज को दीपक दिखाने जैसे है। हम बात करना चाहते हैं सपना पूरा करने के लिए किस हद तक जुनूनी होने का.. उनके सपने के प्रति उनकी जुनूनीयत इस हद तक थी कि उनके पिता उन्हें घर से निकालने की तैयारी कर चुके थे। दिलीप कुमार और उनके पिता मूलतः पेशावर के पठान थे और उनके पिता के मित्र थे पृथ्वीराज कपूर साहब जो कि पंजाबी थे लेकिन लगते पठान थे। पृथ्वीराज साहब के अभिनय से भी दिलीप साहब के पिता नाराज़ थे गोयाकि “अभिनय को वे भाँड़गिरी” मानते थे। अतः वे उन्हें अब्दुल कलाम आज़ाद साहब के पास ले गए। उन्हें किशोर यूसुफ को अभिनय मना करने के स्थान पर कहा जो करो दिल से और ईमानदारी से करना.. किशोर यूसुफ ने इस बात को संजीदगी से लिया क्योंकि उसे यूसुफ से दिलीप साहब बनना था और इस बात की गवाह है वे मात्र 61फिल्में जिनमें दिलीप साहब ने अपने सीमित मेनरिज़्म में अपनी अपार प्रतिभा दिखाई है। और अपने काम के प्रति संजीदगी के कई उदाहरण हैं जैसे.. कोहिनूर फ़िल्म में सितार बजाने के दृश्य के लिए उन्होंने महीनों अभ्यास किया था। दुखद दृश्यों की तैयारी के लिए इतने अंदर तक किरदार के दुःख को महसूस किया था कि अवसाद में चले गए थे मनोचिकित्सक को उन्हें हास्य फिल्में करने की सलाह देनी पड़ी। उसका नतीजा राम और श्याम जैसी क्लासिक है।
उनके जैसी खूबसूरत आँखे और चार्म उनके बाद केवल शाहरुख खान में आ पाया थोड़ा सा। जिसे एक दौर में भाँड़पन समझा जाता था उसे उन्होंने अपने जादू से नायकत्व में बदल दिया और आज देश चलाने जैसा नायकत्व वाला काम भाँड़पन मे बदल दिया गया है यह भी जादू ही है।
राज साहब, दिलीप साहब और देव साहब कट्टर प्रतिद्वंद्वी थे लेकिन उतने ही गहरे मित्र थे। इतने विराट हुनर के मालिक होकर भी अपने निर्देशकों का पूरा सम्मान करते थे। इस कारण संगम जैसी फिम नहीं की उनका तर्क था- “लाले(राज साहब) डाइरेक्टर बदल दे, मैं संगम कर लूँगा क्योंकि मैं एक्ट राज कपूर से बड़ा एक्टर हूँ लेकिन एक्टर दिलीप कुमार डाइरेक्टर राज कपूर से छोटा है। मैं कुछ भी करूँ यह कहलाएगी डायरेक्टर राज कपूर की ही फ़िल्म..” कट्टर प्रतिद्वंद्वी के लिए भी इतना सम्मान??
खैर, वह महानायक नेहरू का दौर था।
जय भारत
योगेश कुमार
यूसुफ से दिलीप साहब- भारत का कोहिनूर
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