हमारे इतिहास की दूसरे देश इज़्ज़त नहीं करते क्योंकि हम हमारे नायकों को ओवररेटेड दिखा देते हैं उन्हें दिव्य बनाकर साधारण मनुष्य वाले उनके संघर्षों को गौण कर देते हैं।
पांडव देवसन्तान थे।
राम-कृष्ण-परशुराम अवतार थे, इसलिए वे श्रेष्ठ तो होने ही है।
हनुमान जी रुद्रावतार थे, समुद्र पार करके एक पूरा देश जला देना और देश के एक कोने से दूसरे कोने जाकर संजीवनी लाना ये संघर्ष गौण कर दिए गए।
शिवाजी महाराज को माँ दुर्गा ने तलवार दी थी गोयाकि उस तलवार के कारण वे अजेय थे, उनका अपना कोई पराक्रम नहीं था।
महाराणा में एकलिंगजी की शक्ति थी उनका संघर्ष कहाँ गया??
सम्भवतः हम भविष्य में गाँधी को बुद्ध, नेहरू को युधिष्ठिर और बाबा साहेब को वाल्मीकि का अवतार बता दें।
हम अपनी निकृष्टता को ढंकने के लिए ऐसा करते हैं- हमारे नायक दिव्य थे, विशिष्ट थे, ताकि हमें उनके आदर्शों के पालन का बोझ ना ढोना पड़े। हमें एक आदर्श व्यवस्था चाहिए लेकिन व्यवस्था को आदर्श बनाने के लिए हम खुद आदर्श व्यक्ति नहीं बनेंगे। सबको सुधारेंगे खुद को छोड़कर..
बाबा साहेब को ओवररेटेड कर दिया ताकि कोई यह ना कहे कि- वे इतनी विषम परिस्थिति में भी नायक बने आप भी बनो। अगर किसी ने ऐसा कहा तो हम कह देंगे। “वे विशिष्ट थे!!”