अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना के हटते ही तालिबान का वहाँ कब्ज़ा हो जाना.. पूरे देश का खून के आंसू रोना!! और तालिबान सरीखे ही कट्टर संगठनों का उसके संदर्भ में अफ़ग़ानिस्तान का मज़ाक बनाना.. किसी और की पीड़ा पर संतोष पाना भी एक प्रकार का मानसिक विकार है. खैर कट्टरता अपने आप में एक मानसिक विकार है.
हम यह भूल जाते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री के छद्म मित्र डोनाल्ड ट्रम्प ने हमें हमारे बुरे समय के धमकी दी थी कि यदि उन्हें हमने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ना दी तो हमें उसके परिणाम भुगतने होंगे.. अब डोनाल्ड ट्रंप सत्ताच्युत हो चुके हैं और अब हमारे देश में हमें डराया जा रहा है कि यदि कोई विशेष अवतार सत्ता से हटा तो हमारे देश का भी यही हाल होगा जो अफगानिस्तान का हो रहा है. इस तरह आपके सामने कट्टर शासक के शासन का महिमाण्डन कर दिया जाता है.. और आप अपने साथ साथ उन संततियों का भविष्य भी उन कट्टर हाथों में देने को सज्ज हो जाते हैं, जिनसे आपको तर्पण लेकर पितृ योनी में संतुष्टि लेनी है.. खैर इस बिंदु से हम पुनः आरम्भ करेंगे.
तो हम बात कर रहे थे हमारे प्रधानमंत्री और उनके मित्रों के बारे में.. प्रधानमंत्री जी के भूतपूर्व अभिन्न मित्र ट्रम्प महोदय थे और अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति भारत के मित्र थे.. किसी राष्ट्राध्यक्ष का मित्र होना और उसी राष्ट्र का मित्र होने में बहुत अंतर होता है.. राष्ट्रपति ट्रम्प प्रधानमंत्री मोदी के मित्र थे और राष्ट्रपति अशरफ गनी भारत के मित्र थे जिन्होंने भारत में होती कोरोना से मौतों पर सार्वजनिक रूप से दुःख प्रकट किया था. किसी राष्ट्र का राष्ट्राध्यक्ष व्यक्तिगत कीर्ति को अपने राष्ट्राध्यक्ष होने के कर्तव्य पर तरजीह देगा तो वह राष्ट्रपति ट्रम्प सरीखे मित्र ही बनाएगा. यहाँ व्यक्तिगत समरूपता का रसायन भी काम करता है, किसी को व्हाइट सुप्रीमेसी स्थापित करनी थी तो किसी को हिन्दू राष्ट्र बनाना है यानी कट्टरता का असर समान रूप से दोनों क प्रभावित करता है. अब हंसी की बात यह है कि कट्टर संगठन आपको मुस्लिम कट्टरता के साइड इफ़ेक्ट पर ज्ञान देंगे और सेक्युलरिज़्म को धिक्कारेंगे.. गोयाकि हमारी कट्टरता उनकी कट्टरता से श्रेष्ठ है.. वे आपके समक्ष सिद्ध कर देंगे कि उनकी साम्प्रदायिक कट्टरता राष्ट्र के लिए है जबकि तालिबान की कट्टरता उनके सम्प्रदाय के लिए.. मेरे आजतक समझ नहीं आया कि कोई भी साम्प्रदायिक कट्टरता राष्ट्र के लिए कैसे हो सकती है??
आज हमारे देश में जो साम्प्रदायिक कट्टरता के बरगद का बीज बोया जा रहा है, उसके पेड़ को बड़ा होते समय नहीं लगेगा.. आज जैसे पाषाण हृदय लोग अफ़ग़ानिस्तान के हालातो पर हंस रहे हैं, हमारे देश में भी यही होगा..
अगर आप अपने देश से प्रेम करते हैं तो नागरिक के हाथ में सत्ता की डोरी रहे ऐसे तंत्र को मज़बूत कीजिये.. जब तक आम आदमी के हाथ में पूरी तरह से ताकत नहीं रहेगी, तब तक राष्ट्र मजबूत नहीं हो सकता. साम्यवाद तानाशाही का ही लोकतांत्रिक रूप है।
जब जब कोई भी सरकार NSA/UAPA का दुरुपयोग करे आप समझ जाइये यह संकेत है, आपके देश का तालिबानी हालातो में ढलने का.
शुरू-शुरू में सत्ता समर्थकों को बहुत मज़ा आता है कि हमारी सत्ता है, बाद में जब कट्टर सत्ता बेलगाम होकर उन्हीं सत्ता समर्थकों की सन्तति को रौंदते हैं और वे संतति जब अपने पूर्वजों को उक्त सत्ता की स्थापना में मददगार होने के कारण गालियां देते हैं,
तो क्या हमारी गलतियों के कारण पीड़ित उस सन्तति के हाथ का तर्पण हमें मिलता है??
किसी भी ग्रन्थ में इसका उत्तर मिलेगा??
और मुझे इसकी गारंटी कौन देगा कि सकारात्मक कट्टरता मेरी सन्तति के लिए हितकर ही रहेगी.. मेरे देश के हालात कभी अफगानिस्तान वाले नहीं होंगे.. मेरी आने वाली पुश्तों में कोई मानवबम नहीं होगा..